मंगलवार, 4 जुलाई 2017

कान्हा किसली..... जंगल सफ़ारी.... कान्हा नेशनल पार्क.... बाघ और बारहसिंगा

कान्हा किसली  ..... का नाम सुनते ही मन मे बाघ और जंगल का विचार आने लगता है.... यह वही कान्हा किसली है जो  रुड्यार्ड किपलिन्ग के जंगल बुक का प्रेरणा स्रोत है.... मोगली बघीरा शेरखान इन्ही जंगलो से प्रेरित पात्र हैं


....रुड्यार्ड की जंगल बुक 1894 मे आयी थी. मध्य प्रदेश के सिवनी क्षेत्र मे भेडियो के बीच एक बालक के मिलने की खबर से प्रभावित होकर रुड्यार्ड ने अपनी यह महान कहानी रची थी ....मोगली की कहानी, बाघो का रोमांच और घने जंगल के आकर्षण ने अंग्रेजो को बहुत प्रभावित किया.... सतपुड़ा मैकल के घाट पहाड़... बान्स के झुरमुट, घास के मैदान ,विशाल साल के पेडो और विविध जीव जंतुओं का सम्मिश्रण के साथ बाघ की उपस्थिति का एहसास अपने आप मे अद्भुत है .



   अंग्रेजो ने इसे मध्य भारत का प्रिन्सेस क्षेत्र कहा है. यहाँ के रहस्य से भरी जन्गलो और कहानियों से जार्ज पन्चम भी बहुत प्रभावित हुये. ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पन्चम जब भारत आये तो उनके जन्गल  भ्रमण कार्यक्रम मे बिहार के पश्चिमी चम्पारण जिले के अलावा मध्य प्रान्त  मुख्य तौर  पर कान्हा किसली को ही रखा गया था.
        यहाँ कान्हा और सूपखार मे जार्ज पन्चम के रुकने के लिये रेस्ट हाउस बनाये गये थे... इनमे सूपखार के जंगल मे जार्ज पन्चम के लिये निर्मित 100 से भी ज्यादा वर्ष पुरानी मिट्टी के  दीवार और घास की छत वाली रेस्ट हाउस आज भी आकर्षित करती है. (चित्र मे देखें) इसे आकर्षक बनाने के लिये चीड व पाइन के वृक्ष इसके आस पास लगाये गये थे जिसे आज भी देखा जा सकता है

सूपखार का रेस्ट हाउस जो ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम के लिये बनाया गया था.

   
        बिलासपुर से कान्हा किसली जाने का रास्ता ही अपने आप में रोमांचक है...बिलासपुर से बाहर निकलते ही धीरे धीरे जगहो के साथ भौगोलिक प्राकृतिक परिवर्तन नजर आने लगते हैं....कानन पेन्डारी के चिड़िया घर से कान्हा के उन्मुक्त जंगल के बीच का सफ़र भी परत दर परत कई कहानियाँ  बताती हैं... रास्ते मे हरे भरे खेत और उनकी मिट्टी को देखने से भी आप कान्हा के कान्हा होने के अर्थ को समझ सकते हैं . खेतों मे धान के स्थान पर गेहूँ फिर दलहन और गन्ने की फ़सल नजर आने लगती है. मिट्टी का रंग गहरा होते जाता है और कन्हार (काली मिट्टी का स्थानीय नाम कन्हार) से ही कान्हा का नामकरण होना बताया जाता है...
     इसी प्रकार मैदानो से घाट पहाड़ होते घनघोर जंगल... आपको रास्ते मे शुगर मिल,भोरमदेव का मंदिर, भोरमदेव अभ्यारञ्य और चिल्फ़ी घाटी के खूबसूरत नजारे देखने मिलेंगे.  यह वही चिल्फ़ी घाटी है जहां सर्दी मे बर्फ़ जमने की खबर अखबारो मे मिलती रहती है. यह वही घाटी है जो छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक प्राकृतिक सीमा व प्रवेशद्वार है.... चिल्फ़ी घाटी से गुजरते हुये ऐसा लगता है जैसे हम फ़ुलो की घाटी मे आ गये हैं चिल्फ़ी को छत्तीसगढ़ के हिल स्टेशन के रुप मे विकसित किया जा सकता है जिसके एक ओर है खूबसूरत घाटी के साथ तराई क्षेत्र मे धार्मिक ऐतिहासिक महत्व की  भोरमदेव का मंदिर और दूसरी ओर है प्राकृतिक जैव विविधता से भरी सूपखार का घनघोर जंगल...कान्हा नेशनल पार्क के अंतर्गत ही सूपखार का जंगल  ऐसा कोर एरिया है जहाँ आप अपने वाहन से जा सकते  हैं. यहाँ पर सडक किनारे ही हिरण सियार मोर और गौर जैसे जंगली जीव  नजर आने लगते हैं. जंगल तो जंगल है आपकी किस्मत अच्छी रही तो बाघ 🐯 भी नजर आ सकते हैं. यहाँ प्रवेश करते समय बेरियर पर जंगल के कुछ नियम बताये गये हैं . वाहन से नीचे उतरना,हार्न बजाना,शोर करना तेज गति से वाहन चलाना सख्त मना है. सूपखार के जंगल मे बाघो के साथ लोगो के इनकाउन्टर के किस्से आम बात रही है... इसके रोमांच से ब्रिटेन के सम्राट भी आकर्षित हो चुके हैं जिनके लिए यहाँ निर्मित रेस्ट हाउस का वर्णन हम पहले कर चुके हैं. यहाँ अपने वाहन पर बैठे बैठे ही हमने इस रेस्ट हाउस का चित्र लिया और आगे गढ़ी की ओर बढ़ चले .

                                सांभर

      रास्ते मे गढ़ी के आस पास  आकर्षक मिट्टी खपरैल के  घर वाले गोन्डो की बस्ती मन मोह लेते हैं.कन्हार मिट्टी के पार से घिरे छोटे छोटे इनके खेतो की मिट्टी इतनी काली है कि जैसे लगता है कोई कोयले का बुरादा छिडक गया हो.  गोन्ड भारत की सबसे बड़ी आबादी वाली जनजाति है. इनका मध्य भारत मे अपना राजतन्त्र और समृद्ध वैभवपूर्ण इतिहास रहा  है . रानी दुर्गावती की प्रतिमा रास्ते मे आपको उसी साहस और अभिमान से खडी मिल जायेगी जैसे वह अकबर की सेना के विरूद्ध खडी हुयी थी. उनका अभिमान, राजशी अंदाज और स्वतन्त्रता प्रेम का प्रतिबिम्ब आप इस क्षेत्र के बाघो मे महसूस कर सकते हैं.
       इस क्षेत्र में आपको बैगा आदिवासी भी नजर आ जाएंगे. उनकी विशेष वेशभूषा से उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है. महिलाये गुदना (टेटु) व पुरुष लम्बे बालो की वजह से भीड मे भी अलग दिखते हैं.भारत की सबसे बड़ी आबादी वाली जनजाति गोन्ड और विशेष पिछ्डी जनजाति मे शामिल बैगा यहाँ के बाघो की तरह असली मूल निवासी हैं.
         एक ब्रिटिश वेरियर एल्विन द्वारा इन दोनो आदिवासी समुदाय के बीच कई वर्ष रहकर सहभागी अवलोकन किया गया. यह अपने आप मे अनोखा अध्ययन था जिसने पूरी दुनिया को यहाँ के मूल निवासी गोन्ड और बैगा के रहस्यो से भरे रीति रिवाज रहन सहन से पहला परिचय कराया.
            वेरियर एल्विन भी इनके प्राकृतिक सादगी पूर्ण जीवन इतने प्रभावित हुये कि उनसे पूर्ण घुल मिल गये व स्वय आदिवासी कहे जाने लगे.  इस क्षेत्र में किये गये उनके अध्ययन से प्रभावित होकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी ने उन्हे जनजाति मामलो का सलाहकार नियुक्त किया था.  कान्हा के जन्गलो से घिरा यह मध्य भारत की वही कर्मभूमि है जहां वेरियर के अनुभव और अध्ययन के आधार पर पूरे देश के आदिवासियों के लिये भारत सरकार द्वारा नीति बनायी गयी. बाद मे वेरियर एल्विन को उनके योगदान के लिये जनजातियो से जुडे संगठनो मे महत्वपूर्ण शासकीय पद दिये गये.
       दरअसल यह गोन्ड, बैगा, बाघ और बारहसिंगा की भूमि है इसलिए सबका जिक्र आवश्यक है . इस जंगल, जीव जंतु विशेषकर बाघ के लिए सबसे ज्यादा त्याग और बलिदान गोन्ड और बैगा जनजातियो ने ही किया है.



        कान्हा नेशनल पार्क में घनघोर जंगल, ऊन्ची घास के मैदान, साल के विशाल वृक्ष और बान्स के झुरमुट बाघो के लिये विशेष अनुकुल हैं.  बाघ की उपस्थिति का मतलब है स्वस्थ जंगल जो आहार श्रृखला को पूर्ण करती है. सुबह सुबह पार्क मे प्रवेश करते ही सियार का परिवार, बन्दरो का दल, हिरणो का झुंड आस पास आसानी से नजर आने लगते हैं. बीच बीच मे मोर, जन्गली मुर्गा, कठफोड़वा, सर्पेन्ट ईगल, उल्लू सहित रंग बिरंगे पक्षी नजर आते रहते हैं. कोयल, मोर, बार्किन्ग डीयर के साथ बन्दरो का कोलाहल जंगल को गुंजायमान रखते हैं. इनके बाद भी रास्तो मे बाघ के पदचिन्ह इस बात का एहसास कराते हैं कि आस पास ही कही बाघ है. उनका होना और दिखायी नही देना रोंगटे खड़े करने वाला रोमांच पैदा करता है. उन्चे घास और बान्स के झुरमुट बाघ की धारियो का भ्रम पैदा करते हैं.  ऐसा भी हो सकता है कि हम बाघ देख रहे हो और छद्मावरण के कारण पहचान न सके. चीतल, सांभर, गौर ( जन्गली भैसा समझने की भूल न करे) और जंगली सुअर बाघ के पसन्दीदा शिकार है जो यहाँ विचरण करते आसानी से देखे जा सकते हैं.  सफ़ारी के इन्टर्वेल मे कान्हा का म्युजियम देखना न भूले. यह जंगली जीवों और पर्यावरण को समझने के लिए बहुत उपयोगी है साथ ही कान्हा की एक डाक्युमेन्ट्री भी दिखाता है.




      कान्हा मे मुझे बाघो के साथ एक और जीव को देखने की चाह थी और वह है हार्ड ग्राउंड बारहसिंगा जो पूरी दुनिया मे अब केवल कान्हा के जन्गलो मे ही दिखायी देती है. यह भारत की सबसे सुन्दर हिरण प्रजाति मानी जाती है.




       हम जब सफ़ारी के अंतिम चरण मे थे तब दुसरे जिप्सी वालो की सूचना पर कि पास ही तेन्दुआ दिखाई दिया है हम उसी ओर हो लिये हमे यहाँ बाघ या तेन्दुआ तो दिखाई नही दिया लेकिन संयोग से हार्ड ग्राउंड बारहसिंगा से मुलाकात हो गयी. यह हमारे लिये अद्भुत क्षण था..... आज भारतीय जंगलो से चीता विलुप्त हो चुके हैं और एक समय 1970 मे हार्ड ग्राउंड बारहसिंगा भी मात्र 66 की संख्या में बचे थे. पार्क के बेहतर प्रबंधन से आज इनकी संख्या 600 से ज्यादा हो चुकी है .



               पार्क के भीतर हमे श्रवण ताल भी दिखाया गया जो अपने नाम के अनुरूप रामायण के राजा दशरथ और श्रवण के प्रसंग से जुड़ा है.  यहाँ के जन्गलो से जुडे अनेक कहानियाँ है जो अधिकांश बाघ, शिकार और शिकारियो से जुड़े हैं.
        कान्हा नेशनल पार्क के मध्य से होकर बन्जर और हालोन नदी गुजरी हैं जो ख़ूबसूरत घाटी का निर्माण करती हैं साथ ही यहाँ के पर्यावरण के लिए बहुत उपयोगी है. बन्जर नदी के नाम से ही शुरू मे बन्जर अभ्यारञ्य था जो 1955 मे कान्हा राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया .यहाँ 1973 से प्रोजेक्ट टाइगर चलाया जा रहा है. अब यहाँ बाघो की संख्या 1976 के 45 से अब 100 से अधिक पहुंच गयी है.
        ईद मुबारक.... शुभ रात्रि.