गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

बांधवगढ की सैर...... jangal safari.... Tiger









     
       मैं पिछले दो वर्षों से बांधवगढ़ जाना चाहता था उसका कारण जंगल में बाघ देखने की लालसा थी। अंत में वो समय आ ही गया और पहले दिन खितौली जंगल में प्रवेश करने के 15 मिनट बाद एक अजब सा भाग दौड़ का माहौल हो गया चारों तरफ गाड़ियां ही गाड़ियां घनघोर जंगल में ट्रैफिक जाम हो गया। आप अपनी गाड़ी एक मीटर भी नहीं हिला सकते थे और इस जाम में भी अजीब सन्नाटा था। हर कोई यह समझ चूका था कि पास ही किसी को बाघ दिखा है ।  दो शावक बहुत दूर बांस के झुरमुट के पीछे आराम कर रहे थे। जब तक बाघ दिखते रहे उनके साथ समय बिताते रहे । हमें लगा पहले दिन ही हम ने सब देख लिया । लेकिन पिक्चर अभी बाकी था।

       दूसरा दिन ताला जोन में प्रवेश करते ही समझ आगया कि यहाँ से ऐसे ही मन भरने वाला नहीं है। यह जोन पठारी मैदान से होते हुए प्राकृतिक घाट पहाड़ सुरम्य जंगल पार कर चरनगंगा नदी के उद्गम तक पहुचती है जहाँ भगवन विष्णु की शेष सैय्या है इसके ऊपर भी बांधवगढ़ का किला है जहाँ अभी जाना प्रतिबंधित रहता है दूर से ही देखा जा सकता है।सबसे पहले हम बड़ी गुफा पहुचे । बांधवगढ़ में 39 प्राचीन गुफावों का उल्लेख मिलता है उनमे यह सबसे बड़ी है जिसे दसवी शताब्दी में निर्मित बताया गया है। इसका बहुत ही सामरिक महत्त्व रहा है क्योंकि इस जगह को बांधवगढ़ के किले से देखा जा सकता है यहाँ पहले सैनिक ठहरा करते थे।

      गॉइड से इतिहास के बारे में बातें करते हुए हम जैसे ही कुछ दूर पहुचे सीतामण्डप के पास बाघिन होने की सूचना अन्य जिप्सी वालों ने दी और हम वहां पहुँच कर पानी के सोते के पास बाघिन का इंतज़ार करने लगे। वहां पहले से ही टाइगर शो के लिए बहुत भीड़ थी। गॉइड ने हमें बताया की सीतामण्डप में नेचुरल ब्रिज है  और यह स्थान बाघ देखने की सबसे प्रबल सम्भावना वाली जगह है।
     सीतामंडप पानी की कुण्ड वाली गुफा नुमा स्थान है जिसके बगल में एक नाला है जिस पर नेचुरल ब्रिज है दृश्य बहुत ही मोहक है। इसका नाम बाघिन सीता के नाम पर पड़ा है यहाँ उसका प्रेमी बाघ चार्जर उससे मिलता था और अंतराष्ट्रीय स्तर पर यह जोड़ा प्रसिद्ध रहा क्योंकि इन बाघों का जीवनपर्यंत सीता का 1998 और चार्जर का सन् 2000 तक अध्ययन हेतु पीछा किया गया था । यह स्थान दोनों के प्रेम और बाद में उनके वंशज बी 1 और बी 2 की वजह से चर्चित रहा । यह एक अद्भुत स्थान था ।

        सीता और चार्जर के रोमांस की बाते करते हुए लंबे इंतजार के बाद सब में बदहवासी फ़ैल गयी।किसी को कुण्ड के पास बाघ दिखाई देने लगा था और कुछ ही देर में बाघिन अपने राजशी अंदाज में धीरे से प्रगट हुयी और सब को टाइगर शो के रोमांच से अभिभूत कर गयी। दूसरे दिन भी किसमत के साथ देने से हम बहुत खुश थे। टाइगर शो में इंटरवेल भी था जहाँ हमने जलपान किया फिर बढ़ गए चरनगंगा की उद्गम की ओर ।रास्ते में हमें प्राचीन अस्तबल और कचहरी जहाँ टैक्स जमा होता था दिखाया गया। अंत में हम पहुचे दसवीं शताब्दी में निर्मित सात फन वाले भगवान विष्णु के शेष सैय्या पर जहाँ ऐसा लगा जैसे बांधवगढ़ पूरी सृष्टि है और उसके रचियता यहाँ पहाड़ी पर आराम कर रहे हैं । इसका निर्माण कलचुरी शाशकों के मंत्री गोल्लक ने कराया था । अभी भी किले में पहुचने की ख्वाहिश हममे बच गयी थी वहां से लौटने का मन तो नहीं था लेकिन जंगल के कुछ नियम होते हैं।


     बांधवगढ़ टाइगर शो से बहुत अधिक है। यहाँ सब मिलता है। रहस्य, रोमांच ,अध्यात्म ,इतिहास, प्रकृति, जीवन विविधता साथ में बाघों के रोमांस के किस्से।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें