बुधवार, 7 जून 2017

14 सितम्बर.... हिन्दी दिवस.... हिन्दी भाषा का इतिहास

14 सितंबर हिंदी दिवस💐,,,,
          मैं यह नहीं कहूंगा कि हिंदी ही पढ़ना और बोलना चाहिए, हिंदी अन्य भाषाओं से श्रेष्ठ है या हिंदी पर हमें गर्व है....बल्कि आज यह जानना अधिक आवश्यक है कि हिंदी क्या है और क्यों है?
       भाषा का इतिहास अपनी संस्कृति एवं सभ्यता को जानने का सबसे बेहतर और सरल माध्यम है । इसका इतिहास बहुत रोचक है और उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि पुरातात्विक इतिहास। बस जानने और समझने का दृष्टिकोण थोड़ा अलग है।
      प्राचीन भारत की सबसे पुरानी ज्ञात सभ्यता सिंधु सभ्यता है। इस सभ्यता की जानकारी का स्रोत पुरातात्विक है। कार्बन डेटिंग के आधार पर इसका काल निर्धारण 1750 ई पू से पहले का माना गया है। यहाँ के सुनियोजित नगर नियोजन से पता चलता है कि यह सभ्यता कितनी उन्नत थी और इतनी विकसित सभ्यता की भाषा व् लिपि जरूर रही होगी। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लाहौर मुल्तान रेलवे ट्रेक के निर्माण के समय वहां के बड़े बड़े टीलों से निकलने वाली ईंटों का प्रयोग ट्रेक की नींव बनाने में अज्ञानता वश बेतरतीब किया गया । चार से पांच हजार वर्ष पुरानी इन  ईंटों को हवा पानी मौसम व् समय की मार वैसे ही डिकोड नहीं कर पायी है जैसे वहां की प्राप्त भाषा और चित्रात्मक लिपि को सारे विद्वान डिकोड नहीं कर पाए हैं। आज तक सिंधु सभ्यता की भाषा और लिपि पढ़ी नहीं जा सकी है।
      अब यह निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता संस्कृत भाषा(आर्य भाषा परिवार) वाली वैदिक सभ्यता से अलग थी।
       आर्य भाषा परिवार के शब्द माता पिता सहित कई शब्द के उच्चारण बहुत ही रोचक तरीके से एक सामान हैं । इसी आधार पर इन्हें एक भाषा परिवार माना गया है। आर्यों के मध्य एशिया होते हुए प्रवास का एक महवपूर्ण प्रमाण हित्ती साम्राज्य की राजधानी (अभी टर्की में) बोगाजकोई के अभिलेख से होता है यहाँ के अवशेषों में सिंह द्वार मिले हैं तथा अभिलेखों (1400 बी सी ) में दो राजाओं के मध्य संधि के लिए इंद्र मित्र नासत्य वरुण देवताओं का साक्षी के रूप में उल्लेख है जो कि वैदिक साहित्यों में उल्लिखित देवता हैं । स्पष्ट है कि 1400 बी सी में आर्य यहाँ थे।
          आर्यों के प्रवास में पश्चिम की ओर ग्रीक लैटिन व् अंग्रेजी का विकास हुआ तथा पूर्व की ओर प्रवास में एक शाखा ईरानी फारशी भाषा और दूसरी शाखा भारत में संस्कृत के रूप में विकसित हुआ ।संस्कृत  आर्य भाषा परिवार से थी तथा आर्यों के साथ आयी थी और बहुत ही परिष्कृत तथा परिमार्जित भाषा थी।
      वैदिक काल को दो भागों में बांटा गया है पहला ऋग्वैदिक काल( 1500 से 1000 बी सी ) दूसरी उत्तरवैदिक काल (1000 से 600 बी सी)। लगभग 1000 बी सी में लोहे का ज्ञान आर्यों को हुआ था इसे उत्तरवैदिक काल में अयस कहा गया है जिसका ज्ञान ऋग्वेद के समय आर्यों को नहीं था।
      संस्कृत बहुत अधिक व्याकरणी थी इसलिए आमलोग बिना शिक्षा दीक्षा लिए इसका प्रयोग नहीं कर सकते थे । इसी कारण इसके बिगड़े स्वरुप व्  देशी भाषा के मेल से प्राचीन प्राकृत तथा पाली का जन्म हुआ जो संस्कृत से सरल थे साधारण जन में लोकप्रिय हो गए।  बुद्ध तथा महावीर के समय भाषाई आधार पर संस्कृत उच्च वर्गों ब्राह्मणों की कर्मकांडीय और उच्चतावादी दृष्टिकोण से बंध गयी । इसी उच्चतावादी दृष्टि कोण पर कुठाराघात करते हुए बुद्ध ने पाली में तथा महावीर ने प्राकृत में अपने समतावादी दृष्टिकोण का प्रचार किया जो तब लोकभाषा थी।
          वैदिक काल में भाषा की लिपि प्रचलित होने के प्रमाण नहीं मिले हैं । इनका संरक्षण श्रुति के आधार पर( गुरु शिष्य परंपरा में श्रवण) संभव हो पाया । वैदिक काल 600 बी सी के पश्चात् तथा सम्राट अशोक के पहले ब्राम्ही लिपि के उपयोग का प्रमाण  मिला है  .भारतीय संस्कृति के अनुरूप ही सभी भारतीय लिपियों का विकास ब्राम्ही लिपि से ही हुआ है । जो कि भारत में अनेकता में एकता को पुनः प्रमाणित करती है। ब्राम्ही लिपि से ही 1000 ईस्वी में देवनागरी लिपि का विकास हुआ है जो की हिंदी भाषा के लेखन हेतु प्रयुक्त होती है। इस् प्रकार देवनागरी, बंगला, गुरुमुखी, गुजरती, ओड़िया सहित दक्षिण के लिपियों का विकास भी ब्राम्ही लिपि से हुआ जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोती है। इसी तरह भारत के अधिकांश भाषा का विकास आर्य भाषा परिवार से हुआ है।
       संस्कृत से प्राकृत और पाली के बाद अपभ्रंश का विकास हुआ जिसमे पुनः देशी बोली व् फारशी अरबी  विदेशी प्रभाव से 1000 ईस्वी में हिंदी का परिपक्व स्वरुप सामने आया। यह भारत के ऐतिहासिक सांस्कृतिक विकास की धरोहर है तथा अनेकता में एकता का सबसे अच्छा उदाहरण है।

 वास्तव में हिंदी में संस्कृत की तरह रूढ़ियाँ नहीं है यह भारतीय संस्कृति के विकास के अनुरूप लचीला है। वर्तमान में यह अरबी फारशी के व्यापक प्रयोग वाली उर्दू से समन्वित हो चुका है तथा विदेशी भाषा अंग्रेजी पुर्तगाली के शब्दों को भी अपने सांचे में ढालकर उन्हें अपना बना चुका है । हिंदी का शब्दकोष सर्वाधिक ढाई लाख शब्दों का है जहाँ अंग्रेजी शब्दकोष में महज 10 हजार शब्द हैं। अन्य भाषा की तुलना में हिंदी अधिक परिष्कृत और वैज्ञानिक है जो की त्रुटि रहित है । प्रत्येक ध्वनि का लेखन व् उच्चारण वास्तविक रूप में केवल हिंदी भाषा में किया जा सकता है।
                                                                       भाषा अभिव्यक्ति का एक माध्यम है।यह एक कला तकनीक है साधन है जिससे संचार किया जा सकता है। यह संस्कृति एवं सभ्यता का मुख्य घटक है। अंग्रेजों ने भौगोलिक वैज्ञानिक         खोज ,उपनिवेशवाद, विजय तथा सृजन से अंग्रेजी को एक अंतराष्ट्रीय लिंक भाषा बना दिया है अतः उसका ज्ञान काल व् परिस्थिति के कारण अपरिहार्य हो गया है। अंग्रेजी के ज्ञान को कौशल विकास,तकनिकी कुशलता  व् ज्ञान अर्जन के रूप देखना चाहिए । अंग्रेजी का इस्तेमाल करना वैसा ही है जैसे इटली में जाकर इडली के स्थान पर पास्ता खाना।
     अंग्रेजी जान लेने का यह अर्थ कतइ नहीं है कि हम हिंदी भूल जाएंगे । दरअसल हिंदी में भारतीयता बसी है वह हमारी सांस्कृतिक ऐतिहासिक विकासक्रम  की धरोहर है। भारत के विकास के साथ ही हिंदी का भी विकास जुड़ा हुआ है। जैसे जैसे भारत विश्व में प्रभुत्वशाली होगा हिंदी भी विश्व की जरूरत बनेगी।

 जय हिंद हिंदी हिंदुस्तान ।

 हिंदी दिवस की पुनः बधाई

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